भारत के मध्य प्रदेश के भोपाल शहर में 4 दिसंबर 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के शेयरों से एक ज़हरीली गैस का प्लांट हुआ, जिसमें लगभग 15000 से अधिक लोगों की जान गई और बहुत सारे लोग कई तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अँधेरेपन के भी शिकार हुए।
भोपाल गैस कांड में मिथाइलआइसोसिनेट (एमआईसी) नामक जहरीली गैस का कारखाना हुआ था। इसका उपयोग कीटनाशक बनाने के लिए किया गया था। अंतिम दिनों के अध्ययन में विभिन्न स्रोतों की अपनी-अपनी राय होने से भिन्नताएं होती हैं। फिर भी पहले अधिकारिक तौर पर दिवंगत लोगों की संख्या 2259 थी। मध्य प्रदेश की आशुतोष सरकार ने 3787 लोगों की गैस मृत्यु की पुष्टि की थी।
अन्य लगभग निष्कर्ष हैं कि 8000 लोगों की मौत हो गई थी तो दो सप्ताह तक अंदर चले गए थे और अन्य 8000 लोगों की मौत गैस से हुई थी। 2006 में सरकार द्वारा शपथ पत्र में यह माना गया था कि विश्वासियों से करीब 558,125 प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित और आंशिक रूप से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या लगभग 38,478 थी। 3900 तो बुरी तरह प्रभावित और पूरी तरह अपंगता का शिकार हो गया।
भोपाल गैस उद्योग को कांस्टेबिल कम्युनिस्ट समुदाय और उससे प्रभावित पर्यावास को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली औद्योगिक कंपनियां बनी हुई हैं। इसलिए 1993 में भोपाल की इस त्रासदी का निर्माण भोपाल-अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग द्वारा किया गया, जिसमें इस त्रासदी के पर्यावरण और मानव समुदाय पर होने वाले ढांचे को शामिल करने का काम किया गया था।
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Ranjeet Kumar Pathak
( B.Sc Physics V.K.S. University )